त्याग और संसार के मोह से मुक्ति पाने का मार्ग है जैन दीक्षा

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जैन दीक्षा
जैन दीक्षा

जैन दीक्षा : जैन धर्म, दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक, अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह और संयम के सिद्धांतों के लिए जाना जाता है। जैन धर्म का केंद्र मोक्ष या निर्वाण के चक्र से मुक्ति का अवलम्बन पर आधारित है। जैन दीक्षा, जीवन के अंतिम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत को बताती है। देखा जाए तो यह दीक्षा एक तरह से ईश्वर के मार्ग पर चलने की शुरुआत है। आज के १-१. ५ करोड़ जैन समाज के लोग है, पर इनमें से कुछ हिंदू धर्म का पालन करते है। जैन धर्म के अनुशासन बहुत ही कठिन है। इसलिए ज्यादातर लोग इसको निभा नही पाते है। जैन धर्म को मानने वाले बहुत से ऐसे नियमो का पालन करते है, जो एक आम इंसान के लिए बहुत कठिन है। आइए जानते है जैन धर्म के अनुशासन –

जैन धर्म के नियम और दीक्षा

जैन धर्म को अपनाना एक गंभीर और परिवर्तन पर निर्भर प्रक्रिया है, जो व्यक्ति के जैन जीवन के रास्ते के लिए उनकी दृढ़ता को मजबूत करती है। यह एक जरूरी कदम है जो गहरे विचार, समर्पण और नैतिक और आध्यात्मिक अनुशासन की जिंदगी के सही पक्ष को पहचानने की क्षमता होती है। जैन दीक्षा किसी भी आयु, लिंग या सामाजिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के लिए होती है, जो आध्यात्मिक उज्ज्वलता की उनकी खोज में सच के साथ आगे बढ़ना चाहते है। जैन दीक्षा कोई भी ले सकता है, लेकिन इसके नियमों को पूरी तरह से मानना जरूरी होता है।

दीक्षा के समय होने वाला आयोजन

दीक्षा समारोह को साधु या साध्वियों द्वारा आयोजित किया जाता है, जो दीक्षा ग्रहण करने वाले साधु या साध्वियों को जैन धर्म के विषय में समझाते है। कार्यक्रम के दिन जैन शिक्षा ग्रहण करने वाले लोगो को अध्यात्मिक संस्कृति के नियमों को समझाया जाता है, जो प्रारंभिक पूजा के जरिए जोड़ा जाता हैं, और जैनिज्य की जरूरी शिक्षाओं को ग्रहण करवाते हैं। यह पूरी प्रक्रिया उन्हें यह दिखाने के लिए जो व्यक्ति विश्वसनीयता और अध्यात्मिक उन्नति की ओर आगे बढ़ रहे हैं। इस घोषणा के बाद अनेकों रीतिरिवाजों और पूजाओं का आयोजन किया जाता है। इस मोह-माया से जुड़ी दुनिया के नकारात्मक विषयों के बारे में संक्षेप से वर्णन किया जाता है। आज तक जो संपत्ति को साधु या साध्वियों ने कमाया है, उसका त्याग करना सबसे आवश्यक है। यहां तक की अगर आपका कोई पुत्र या पुत्री है, तो उस पर भी आप तक अपना अधिकार बस दीक्षा वाले दिन तक ही रख सकते है। इसके बाद आप जीवनभर सफेद वस्त्रों मे दीक्षा के द्वारा कमाया हुआ अन्न और जल ग्रहण कर सकते है। हाल ही में अहमदाबाद के एक बिजनेसमैन के परिवार में 11 वर्ष के बच्चे और उसकी मां ने जैन दीक्षा ग्रहण की।

जैन दीक्षा के पांच महाव्रत

जैन दीक्षा का सबसे जरूरी इसमें शामिल महाव्रतों का पालन है, जो जैन सिद्धांतों के अनुसार जीवन जीने के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन पांच महाव्रतों में अहिंसा (हिंसा न करना), सत्य (सत्य), अस्तेय (चोरी न करना), ब्रह्मचर्य (ब्रह्मचर्य या ब्रह्मचर्य) और अपरिग्रह (अपरिग्रह) शामिल हैं। जैन धर्म की दीक्षा का पालन करने वाले इन 5 नियमों को अपने जीवन के अंतिम क्षण तक अपनाते है।

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