PM Modi Meditation : पीएम मोदी जिस शिला पर लगा रहे है ध्यान क्या है उसका इतिहास

0
PM Modi Meditation
PM Modi Meditation

PM Modi Meditation : लोकसभा चुनाव का आखिरी चरण 1 जून को है, अब चुनाव प्रचार थमने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी अपने तय कार्यक्रम के अनुसार कन्याकुमारी पहुंच गए हैं। पीएम मोदी स्वामी विवेकानंद रॉक मेमोरियल के ध्यान मंडप में ध्यान लगा रहे है। पीएम वहां 45 घंटे तक ध्यान लगाएंगे। 1 जून की शाम को वह ध्यान मंडप से वापस आएंगे। गुरुवार को कन्याकुमारी पहुंचने के बाद पीएम मोदी ने सबसे पहले उस मंदिर में पूजा-अर्चना की, जो मां पार्वती के देवी कन्याकुमारी के रूप को समर्पित है। इस मंदिर का नाम भगवती अम्मन मंदिर भी है। इस मंदिर के इतिहास को देखा जाए, तो 131 साल पहले स्वामी विवेकानंद 1892 में कन्याकुमारी आए थे। तब विवेकानंद ने इस समुद्र की शिला पर ध्यान लगाने से पहले इसी मंदिर में भक्तिपाठ किया था, और आज पीएम मोदी ने भी इसी मंदिर में ध्यान शुरू किया है।

क्या होगा पीएम मोदी के ध्यान का रूटीन

पीएम ने यह ध्यान गुरुवार शाम को 6 बजकर 45 मिनट पर शुरू किया, जो 1 जून की दोपहर 3 बजे तक चलेगा। इस तरह पीएम मोदी पूरे 45 घंटे तक लगातार ध्यानमग्न रहेंगे। इस 45 घंटे वो किसी भी तरह का अन्न का सेवन नहीं करेंगे, और सिर्फ तरल पेय नारियल पानी, ग्रेप जूस और पानी ही ग्रहण करेंगे। ध्यान की इस प्रक्रिया में पीएम मोदी 40 घंटे तक मौन धारण करेंगे। कन्याकुमारी के ध्यान मंडप पहुंचने के बाद पीएम ने ध्यान लगाने से पहले स्वामी विवेकानंद के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस और उनकी धर्मपत्नी मां शारदा को प्रणाम किया। उसके बाद स्वामी विवेकानंद की विशाल प्रतिमा पर भी फूल अर्पित किए।

क्या है शिला का इतिहास

यह शिला पहले बहुत से विवादों का सामना कर चुकी है। सन् 1963 को विवेकानन्द जन्मोत्सव समारोह पर तमिलनाडु में आरएसएस के प्रान्त प्रचारक दत्ताजी दिदोलकर को इच्छा हुई, कि इस शिला का नाम ‘विवेकानन्द शिला’ रखना चाहिए। शिला पर स्वामीजी की एक प्रतिमा का अनावरण करना चाहिए। कन्याकुमारी के हिन्दुओं में भारी उत्साह हुआ, और उन्होंने एक समिति का गठन किया। उस समय स्वामी चिद्भवानन्द इस कार्य में जुट गये। हिंदुओ की इस क्रांति को देखकर तमिलनाडु का कैथोलिक चर्च के पादरी डर गए। उनका डरने का कारण था कि यह काम हिन्दुओं में हिंदुत्व की भावना न भर दे। मिशन की राह में आरएसएस का यह प्रस्ताव चर्च को बड़ा रोड़ा लगा। चर्च ने तुरंत उस शिला को विवेकानन्द शिला की बजाय ‘सेंट जेवियर रॉक’ नाम दे दिया और लोगो के बीच बहुत बड़ा मिथक गढ़ा कि सोलहवीं शताब्दी में विवेकानंद से पहले सेंट जेवियर इस शिला पर आये थे। शिला पर अपना अधिकार सिद्ध करने के लिए वहां चर्च के प्रतीक चिन्ह ‘क्रॉस’ की एक प्रतिमा भी स्थापित करवा दी गई। चट्टान पर भी क्रॉस बना दिए। विवाद बढ़ता देखकर उस समय की राज्य सरकार ने वहां धारा 144 लागू कर दी। तब आरएसएस के संचालक ने अपने पक्ष में 323 सांसदो के हस्ताक्षर लेकर तत्कालीन पीएम लाल बहादुर शास्त्री के पास पेश किए जिससे विवेकानंद शिला स्थापित करने का फैसला हुआ। तब इंदिरा गांधी ने भी इस समारोह में हिस्सा लिया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

18 − 9 =