Philosophy of life : “संसार में न्याय भी होता है, और अन्याय भी। बहुत से लोग दूसरों पर अन्याय करते रहते हैं। वे ईश्वर की न्याय व्यवस्था को तो न के बराबर समझते हैं। और माता-पिता समाज एवं राजा की न्याय व्यवस्था को भी कम ही समझते हैं, या नहीं समझते।”
“यदि वे ईश्वर माता-पिता समाज एवं राजा की न्याय व्यवस्था को समझते होते, तो इस प्रकार से दूसरे मनुष्यों पर अथवा गौ मुर्गी भेड़ बकरी आदि प्राणियों पर अत्याचार नहीं करते।”
क्योंकि वेदों और ऋषियों का यह सिद्धांत है कि “दंड के बिना कोई सुधरता नहीं है.” किसी भी अपराध को दूर करने का केवलमात्र एक ही उपाय है, “उस अपराधी को उचित दंड देना.” “यदि अपराध बड़ा हो, तो थोड़ा सा दंड देने पर भी वह व्यक्ति नहीं सुधरता। दंड भी उसी अनुपात में बड़ा होना चाहिए, तभी उसका सुधार होता है।” तो वेदों का यह सिद्धांत हुआ कि “जब तक अपराधी को अपराध के अनुसार उचित दंड न दिया जाए, तब तक वह सुधरेगा नहीं.”
इसलिए इस मनोवैज्ञानिक सिद्धांत के आधार पर ईश्वर अपराधियों को दंडित करता है। “जो लोग इस जन्म में दूसरे मनुष्यों अथवा गौ मुर्गी भेड़ बकरी आदि पशुओं पर अत्याचार करते हैं। ईश्वर उन्हें अगले जन्म में पशु पक्षी कीड़े मकोड़े शेर भेड़िए सांप बिच्छू अथवा वृक्ष आदि योनियों में डालकर उन्हें भयंकर दुख देता है। यदि यह बात लोगों को समझ में आ जाए, तो वह अपराध करना कम कर देंगे अर्थात् छोड़ देंगे।”
“जिन सीधे-साधे मनुष्यों अथवा प्राणियों पर ये लोग अत्याचार करते हैं। वे मनुष्य अथवा प्राणी इस जन्म में तो थोड़ा कष्ट सह लेंगे, अन्याय का दुख भोग लेंगे। परंतु इससे उनका जितना नुकसान होता है, उस नुकसान की पूर्ति ईश्वर उनको अगले जन्म में या जब भी उसकी कर्म फल व्यवस्था के अनुसार उचित होगा, तब अवश्य ही करेगा। इसमें कुछ भी संदेह नहीं है।”
“क्योंकि जब तक क्षतिग्रस्त व्यक्ति की क्षतिपूर्ति न की जाए, तब तक उसके साथ न्याय हुआ, ऐसा नहीं माना जाता। फिर ईश्वर तो न्यायकारी है ही, बिना क्षतिपूर्ति किये वह सच्चा न्यायकारी राजा कैसे कहलाएगा?”
इसलिए ईश्वर की न्याय व्यवस्था को समझने का प्रयत्न करें। अन्यायग्रस्तों की वह क्षतिपूर्ति करेगा। और अन्यायकारियों को भयंकर दंड देकर दुखी करेगा।” “अतः सावधान! सोच समझकर सही कार्य करें। तभी आपका भविष्य उत्तम बनेगा अन्यथा नहीं।