Article 370 : कश्मीर के मुद्दे को लेकर वैसे आपने पहले भी पढ़ा होगा। लेकिन कश्मीर की यह लड़ाई आज की नहीं है, यह कहानी भारत की स्वतंत्रता से पहले शुरु हुई थी। इस तनाव की शुरूआत मानी जाए तो 10 मई, 1946 को नेशनल कांफ्रेंस ने शेख मोहम्मद अब्दुल्लाह के नेतृत्व में ‘कश्मीर छोड़ो’ आंदोलन से हुई। अपने भाषण में 17 मई, 1946 को शेख मोहम्मद अब्दुल्लाह ने कहा- “डोगराओं के अत्याचार ने हमारी आत्मा को घायल कर दिया है। हमें गुलामी के विरुद्ध लड़ना ही होगा और ‘जेहाद’ के मैदान में हम एक सैनिक की तरह कूदेंगे। हर आदमी, औरत और बच्चा ‘कश्मीर छोड़ो’ का नारा देगें। इस भाषण से भड़क कर कश्मीरी कौम ने अपनी इच्छा जाहिर कर दी है। इस भाषण के बाद 20 मई 1946 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इनके साथ नेशनल कांफ्रेंस के अन्य प्रमुख नेताओं को भी बंदी बना लिया गया। उस समय नेहरू ने शेख अब्दुल्लाह की तुरंत रिहाई की माँग की और उनके बचाव की व्यवस्था करने के लिए खुद कश्मीर रवाना हो गए। कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरि सिंह ने संभवतः, अपने प्रधानमंत्री रामचन्द्र काक की सलाह पर नेहरू के राज्य में घुसने पर पाबंदी लगा दी। नेहरू ने निषेधाज्ञा का विरोध किया और उन्हें बंदी बना लिया गया। इस घटना ने जनता में हलचल पैदा करने के साथ-साथ महाराजा हरि सिंह और नेहरू के बीच के आपसी संबंध में सदा के लिए खटास भर दी। जैसा कि बाद की घटनाओं से पता चलता है कि नेहरू कभी भी हरि सिंह के विरुद्ध अपने बैर को भुला नहीं पाए।
कश्मीर को बांटा राजनीति ने
उस समय काँग्रेस कार्य समिति ने नेहरू को दिल्ली लौटने के लिए मना लिया। बाद में शेख अब्दुल्लाह को रिहा कर दिया गया जिसके बारे में कुछ लोगों का कहना है कि ऐसा उनके द्वारा महाराजा से सशर्त क्षमा याचना करने के बाद हुआ। अक्टूबर 1947 में मुस्लिम कांफ्रेंस ने मीरवाइज मौलवी युसूफ शाह, चौधरी गुलाम अब्बास और कुछ अन्य नेताओं ने प्रत्यक्ष कार्यवाही अभियान आरंभ किया। जिसमें इन लोगों को बंदी बना लिया गया। इस घटना से जम्मू-कश्मीर के मुसलमानों पर मुस्लिम लीग के प्रभाव का पता चलता है। मीरवाइज मौलवी युसूफ शाह ने नेशनल कांफ्रेंस और काँग्रेस के प्रति अत्यंत ही विद्वेषपूर्ण प्रदर्शन किया। काँग्रेस के हस्तक्षेप पर अफसोस व्यक्त करते हुए उन्होंने 25 सितंबर 1946 के अपने वक्तव्य में कहा- “हिंदू पूँजीवादी राज्य को अपनी गिरफ्त में लेना चाहते हैं लेकिन मैं चेतावनी देता हूँ कि यदि काँग्रेस अपनी ताकत से जम्मू-कश्मीर की सरकार को डराती-धमकाती है और फासीवादी नेशनल कांफ्रेंस के साथ नापाक गठबंधन करती है तो उसे मुसलमानों का भारी विरोध झेलना पड़ सकता है।”
कश्मीर का आजादी के समय हाल
यह आजादी के समय की बात है, जब महाराजा हरि सिंह के एक फैसले से कश्मीर की राजनीति में बहुत बड़ा बदलाव हुआ। यह बदलाव कहा जा सकता है आज के विवादो का कारण है। 10 मई 1947 को मुस्लिम कांफ्रेंस के अध्यक्ष चौधरी हमिदुल्लाह खान ने एक चौंकाने वाला रोचक विचार जारी कर महाराजा हरि सिंह से स्वयं को स्वतंत्र घोषित करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा- “यदि कश्मीर खुद को हत्या और खून-खराबे से दूर रखना चाहता है तो इसे एक सख्त और साहसी नीति अपनाने में देर नहीं करनी चाहिए। महामहिम महाराजा बहादुर को कश्मीर को तुरंत आजाद घोषित कर देना चाहिए। जनता की आकांक्षा के अनुरूप संविधान तैयार करने के लिए एक अलग संविधान सभा तुरंत स्थापित करनी चाहिए। इस नीति को लागू करने में महाराजा बहादुर को मुसलमानों का सहयोग मिलेगा। राज्य में कुल आबादी का अस्सी प्रतिशत हिस्सा मुसलमानों का है। उनका प्रतिनिधित्व मुस्लिम कांफ्रेंस करता है। मुसलमान समुदाय स्वतंत्र और लोकतांत्रिक कश्मीर के प्रथम संवैधानिक शासक के रूप में महाराजा बहादुर का स्वागत करेगा।”
यह लेख इतिहास से जुड़ी बहुत सी किताबों से रिसर्च पर तैयार किया गया है। कश्मीर का मुद्दा काफी गंभीर है और साथ ही लंबी विचारधारा पर आधारित है। इसलिए लेख पंसद आने पर आप हमे प्रतिक्रिया दें। जिससे हम इसके आगे के इतिहास आप तक बिना किसी फेरबदल के प्रस्तुत कर सकें।