नैना देवी का शक्तिपीठ भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है।

हिंदू पुराणों के अनुसार नैना देवी की पहाड़ियों में अत्रि, पुलस्त्य और पुलह ऋषियों ने तपस्या की थी।

नैना देवी के उदय की कहानी इसके नाम में ही छिपी है।

जब मां पार्वती के पिता दक्ष प्रजापति के द्वारा भगवान शिव का यज्ञ में आमंत्रित करके अपमान किया गया।

अपने पति के अपमान से दुखी होकर माता पार्वती ने पिता द्वारा किए तैयार किए गए यज्ञ कु्ण्ड में अपने प्राण त्याग दिए।

इस घटना से दुखी भगवान शिव ने अपने सारे कर्तव्यों को त्यागकर माता पार्वती के मृत शरीर को लेकर तांडव करना शुरु कर दिया।

भगवान शिव के इस तांडव से पृथ्वी का संतुलन बिगड़ने लगा। तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव को कई भागों में खंडित कर दिया।

सुदर्शन चक्र खंड़ित माता सती के अंग 51 जगह गिरें, जो आज शक्तिपीठ के रुप में जाने जाते है।

नैना देवी में माता सती की बायीं आंख गिरी थी, जो एक सुंदर सरोवर के रूप में बदल गई।

आज इसी सरोवर के पास की घाटी में नैना देवी का मंदिर स्थापित है।

माना जाता है कि इस मंदिर के दर्शन करने से नवविवाहित जोड़े का वैवाहिक जीवन बहुत सुखद रहता है।