Hindi Literature : जानें अपने बचपन की लेखिका महादेवी वर्मा के बारें में दिलचस्प बातें

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Hindi Literature : महादेवी वर्मा (1907-1987) हिंदी साहित्य जगत की एक विलक्षण प्रतिभा थीं। कवयित्री, निबंधकार, रेखाचित्रकार और समाज सुधारक के रूप में उन्होंने हिंदी साहित्य को अमूल्य रत्न प्रदान किए।

Early Life and Education

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में एक शिक्षित मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता गोविंद प्रसाद वर्मा उच्च शिक्षा प्राप्त विद्वान थे और माता हेमरानी देवी धार्मिक विचारों वाली कुशल गृहिणी थीं। इन दोनों के विपरीत स्वभावों का प्रभाव महादेवी के व्यक्तित्व में भी दिखाई देता है।

बचपन से ही महादेवी वर्मा कला और साहित्य के प्रति रुचि रखती थीं। माता द्वारा रामायण, गीता और विनय पत्रिका के पाठ उनके संस्कारों में रचे गए। वहीं पिता से उन्हें शिक्षा और अध्ययन का महत्व प्राप्त हुआ। नौ वर्ष की अल्पायु में ही उनका विवाह हो गया, जिसके बाद वे इंदौर से प्रयाग आ गईं। विवाह के बाद भी उन्होंने शिक्षा जारी रखी और प्रथम श्रेणी में मैट्रिक पास कर पूरे प्रदेश में प्रथम स्थान हासिल किया। इसके बाद उन्होंने इंटर और बीए की परीक्षाएं भी उत्तीर्ण कीं। इस दौरान उनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं, जिससे उनकी काव्य प्रतिभा सबके सामने आई।

Pioneer of Chhayavad

महादेवी वर्मा को छायावाद काल की प्रमुख कवयित्री माना जाता है। छायावाद हिंदी साहित्य में एक ऐसा दौर था जिसमें प्रेम, सौंदर्य, प्रकृति और अध्यात्म पर विशेष रूप से लिखा जाता था। महादेवी की कविताओं में प्रकृति का सजीव चित्रण, रहस्यवाद की झलक और करुणा का भाव मिलता है। उनकी रचनाओं में वेदना, निराशा और अकेलेपन की गहराई भी देखने को मिलती है, जिन्हें उन्होंने मार्मिक शब्दों में व्यक्त किया।

उनकी प्रमुख कृतियों में “नीरजा”, “दीपशिखा”, “यामा”, “आंसू”, “स्मृति की रेखाएं” आदि काव्य संग्रह शामिल हैं। इन रचनाओं में प्रेम की असफलता, जीवन की क्षणभंगुरता और अध्यात्मिक खोज के भावों को बखूबी ढंग से उकेरा गया है।

Prose Writing and Other Contributions

महादेवी वर्मा केवल कवयित्री ही नहीं थीं, बल्कि एक सशक्त गद्य लेखिका भी थीं। उनके रेखाचित्र और निबंध साहित्य जगत में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। “श्रृंखला के फूल”, “स्मृति की रेखाएं”, “मेरे बचपन के दिन” आदि उनके गद्य संग्रह हैं। इनमें उन्होंने अपने बचपन के अनुभवों, सामाजिक परिवेश और महिलाओं की दशा पर मार्मिक टिप्पणियां प्रस्तुत की हैं।

महादेवी वर्मा राष्ट्रीय आंदोलन से भी जुड़ी रहीं और उन्होंने समाज सुधार के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किया। वे नारी शिक्षा की प्रबल समर्थक थीं और उन्होंने शिक्षा के माध्यम से महिलाओं के सशक्तीकरण का प्रयास किया।

Honors and Legacy

महादेवी वर्मा को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई सम्मानों से विभूषित किया गया। उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1979) और पद्म विभूषण (1988) जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले। 11 सितंबर 1987 को महादेवी वर्मा का निधन हो गया। लेकिन उनके द्वारा रचित काव्य और गद्य रचनाएं आज भी पाठकों को मंत्रमुग्ध करती हैं।

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